बॉलीवुड के अनकहे किस्से में है सुनहरे दौर के सिनेमा की अनोखी दास्तान

-विजय पाडलकर

हाल ही में मैंने ‘बॉलीवुड के अनकहे किस्से’ पुस्तक पढ़ी। पुस्तक पर कुछ लिखने से पूर्व मैं पुस्तक के प्रकाशक ‘संघीय पब्लिकेशन’ की प्रशंसा करना चाहूंगा। इन्होंने हिंदी में फिल्मों के संदर्भ में इतनी खूबसूरत पुस्तक, वह भी बहुत वाजिब मूल्य पर, प्रकाशित की है। इस पुस्तक में जो दुर्लभ छायाचित्र छापे गए हैं, उन्हें भी बहुत कलात्मकता से प्रस्तुत किया गया है। प्रथम दृष्टि में ही यह हार्डबाउंड पुस्तक आंखों को भा जाती है। प्रत्येक लेखक को लगेगा कि काश मेरी पुस्तक भी इसी ढंग से छपे। इस पुस्तक के लेखक अजय कुमार शर्मा ने दिल्ली के जनसंचार संस्थान से हिंदी पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया है। उन्होंने कुछ समय तक ‘समकाल’  नियतकालिक पत्रिका का संपादन भी किया। पिछले चार दशकों से वह साहित्य, संस्कृति, इतिहास और सिनेमा विषयों पर मौलिक लेखन कर रहे हैं। हिंदी फिल्मों के अध्ययन में उनकी विशेष रुचि है और वह फिल्मों के विविध पहलुओं का अलग-अलग ढंग से विश्लेषण करते रहे हैं। उनके नियमित कॉलम ‘परदा है परदा’ और ‘बॉलीवुड के अनकहे किस्से’ हिंदी के ‘दैनिक भास्कर’ और हिंदुस्थान समाचार ‘ न्यूज एजेंसी में छपते रहे हैं। इस लेखन में उन्होंने हिंदी फिल्मी जगत की अनेक अपरिचित घटनाओं, अनजाने किस्सों को शब्दबद्ध किया है। इन्हें लेखों को इस पुस्तक में संग्रहीत किया गया है।     

हिंदी सिनेमा की दुनिया अजब रंगरंगीली है।  सही अर्थों में सिनेमा का विश्व महासागर सरीखा है। जिसके पास जितनी बड़ी गागर है उतना ही पानी वह इस सागर से भर सकता है। साथ ही यह सागर इतने सुंदर विविध रंगों  से संपन्न है कि प्रत्येक गागर का पानी अपने निराली छटा लिए रहता है। इसकी सत्तर वर्ष की दीर्घ परंपरा है। इस अवधि में अनेक महान कलाकारों ने इस परंपरा को समृद्ध किया है। उनके पदचिन्ह हमें आज भी स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इन बड़े कलाकारों के साथ अनेक अन्य कलाकार भी आ जुड़े थे और अपनी योग्यता द्वारा उन्होंने इस कला के विकास में अपना योगदान दिया था। लेकिन इन अन्य कलाकारों के काम पर कम लोगों की नजर गई। उनके काम को सराहा नहीं गया। इस पुस्तक में अजय कुमार शर्मा ने जो किस्से कहे हैं उनका स्वरूप दुहरा है। उन्होंने जिस प्रकार कुछ नामी कलाकारों के जीवन के अपरिचित प्रसंगों के बारे में लिखा है, उसी प्रकार नाट्यपूर्ण प्रसंगों में सहभागी अनाम कलाकारों के बारे में भी लिखा है। जिस प्रकार उन्होंने राज-दिलीप-देव के बारे में लिखा है उसी प्रकार उन्होंने आज की फिल्म प्रेमी नई पीढ़ी के लिए अपरिचित,  जद्दन बाई, बेगम पारा और कभी मधोक आदि के बारे में भी लिखा है। 

कवि नीरज ने इन्हीं लोगों के बारे में लिखा था, “इन्हीं फकीरों लिखा है इतिहास यहां,  जिन पर लिखने के लिए इतिहास के पास समय न था।” इतने सारे किस्से पढ़ते समय पाठक की वही अवस्था हो जाती है जैसे कि किसी  अनूठी वस्तुओं के संग्रहालय में घूमते समय दर्शक की होती है। इस पुस्तक का एक गुण यह भी है कि इसे बार-बार स्वाद लेकर पढ़ा जाना चाहिए। यह बात एक अच्छा पाठक ही महसूस कर सकता है कि आप इसे पढ़ें, फिर ठहर जाएं। फिर कुछ दिनों बाद दोबारा पढ़ें। इसका एक कारण तो इन प्रसंगों का अनोखापन है दूसरे लेखक की लेखनशैली भी अत्यंत रोचक है। ऐसा लगता है जैसे आप अपने प्रिय मित्र के साथ कोई गपशप कर रहे हों। लेखक ने यह खयाल रखा है कि सामान्य पाठक कहीं भी ऊब ना जाए। लेखक की यह दक्षता प्रत्येक पृष्ठ पर दिखाई देती है।

इस पुस्तक की लेखन शैली ऐसी है कि पुराने जानकार सिने-प्रेमी ‘खोए हुए सुनहरे दिनों’ की यादों में पहुंच जाएंगे और नई पीढ़ी के पाठकों को बॉलीवुड के प्रति कुतूहल जगेगा। यह अत्यन्त आवश्यक है कि हॉलीवुड के प्रभाव में डूबी हुई तरुण पीढ़ी को हिंदी सिनेमा के इतिहास की ओर, इसकी समृद्ध परंपरा के अध्ययन की ओर मोड़ा जाए। इस काम को यह पुस्तक प्रभावी ढंग से कर सकेगी। यह पुस्तक पढ़कर मेरे मन में भी प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि यह किताब लिख लेने के बाद अब शर्मा जी किस ओर मुड़ेंगे?  फिल्म कलाकारों से जुड़ी कहानियां तो कभी खत्म होने वाली नहीं। नए कलाकार आते रहेंगे नए किस्से बनते जाएंगे। मैं चाहता हूं कि शर्मा जी अब कुछ धीर-गंभीर -अभ्यासयुक्त लेखन करें। यदि मैं यहां आपको अपनी एक पुरानी याद सुनाऊं तो अनुचित नहीं होगा। इसी प्रकार के अपने छोटे-छोटे लेखों की एक पुस्तक मैंने मराठी के श्रेष्ठ कथाकार जी.ए.कुलकर्णी को भेजी थी।  उत्तर देते हुए उन्होंने लिखा था,” ये लेख आपने अखबारों के कॉलम के तौर पर लिखे थे, इसलिए स्थान का अभाव रहा होगा। मेरी इच्छा है कि इन स्केचेस को आप ऑइल पेंटिंग्स में बदल दें।” शर्मा जी से मेरी यही अपेक्षा है। (मराठी से हिंदी अनुवाद- मनमोहन चड्ढा; संपर्क[email protected]

पुस्तक : बॉलीवुड के अनकहे किस्से, लेखक : अजय कुमार शर्मा, प्रकाशक : संधीश प्रकाशन, गाजियाबाद, मूल्य: – रुपए 750/-  

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