मो. रफ़ी साहब मानी शहंशाह-ए-तरन्नुम… गायक को अब तक क्यों नहीं मिला भारत रत्न सम्मान?

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Mohd Rafi
मो. रफ़ी, पार्श्व गायक (फाइल फोटो)

-निर्मलेंदु

मो. रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को हुआ था लिहाजा साल 2024 उस महान गायक की जन्मशताब्दी का भी है। रफ़ी साहब की आवाज़ अदि्वतीय ही नहीं, रूहानी भी है। हर अंदाज में उनकी आवाज हमारे भीतर ज़ज्ब हो जाती है। इसलिए हमें उस शुभ घड़ी का इंतजार है जब उनको भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा होगी। अब यदि यह कहें कि रफी साहब भारत रत्न ही नहीं, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड भी डिजर्व करते हैं, तो शायद गलत नहीं होगा। इसका प्रमाण है बैजू बावरा से लेकर आराधना फिल्म के आने तक उन्होंने इंडस्ट्री पर राज किया है। उस दौर में वह सबसे बड़े स्टार गायक थे। 

कहते हैं कि उस समय उन्हें ध्यान में रख कर ही गीत लिखे जाते थे। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि रफी साहब कई गायकों के प्रेरणास्रोत भी रहे हैं। मन्ना डे, किशोर कुमार ही नहीं, मुकेश और महेंद्र कपूर भी उनके मुरीद थे। यहां तक कि तलत महमूद ने भी यह स्वीकार किया था कि जो हरकत रफी साहब कर सकते हैं, वह मैं नहीं कर सकता। इसके प्रमाण हैं भक्तिरस में डूबे ये गीत। 

भक्तिरस में डूबे हुए उनके भजन ‘मन रे तू काहे न धीर धरे’ (फिल्म चित्रलेखा, 1964), ‘मन तड़पत हरी दर्शन को आज’ (बैजू बावरा, 1952), ‘इंसाफ का मंदिर है, ये भगवान का घर है’ (फिल्म अमर, 1954), ‘जान सके तो जान, तेरे मन में छुपे भगवान’ (फिल्म उस्ताद, 1957) ‘जय रघुनंदन जय सियाराम’ (फिल्म घराना, 1961), सुख के सब साथी, दुख में न कोय (फिल्म गोपी, 1970), गीतों को लोग आज भी मंदिरों में गाते रहते हैं। कह सकते हैं कि मंदिरों की आन, बान और शान हैं ये सभी गीत।

यह कहना गलत नहीं होगा कि हर तरह के गीत को- गीत, कव्वाली, ग़ज़ल, सैड सांग्स, रोमांटिक सांग्स, विवाह के गीत, नज्म, विदाई के गीत, भजन,  फ़ास्ट सांग्स, स्लो सांग्स- उन्होंने बखूबी गाया है! उनके गीतों में इतनी विविधता है, जोकि किसी भी गायक में नहीं है। यह बेलाग कहा जा सकता है कि सबसे अच्छे भजन उन्होंने ही गाये हैं।

हम सब जानते हैं कि आज भी उनके गीत गाकर असंख्य कलाकार अपने परिवार के लिए मुख्य आयस्रोत बने हुए हैं। कई दशक बाद भी लोग आज यही कहते हैं कि रफी साहब निहायत ही शरीफ और नेकदिल इंसान थे और इसीलिए वे उन्हें भारत रत्न के लिए सबसे योग्य पात्र मानते हैं। सो, मोदी सरकार से मेरा विनम्र निवेदन है कि वह जल्द से जल्द हमारे सबसे प्यारे, सुरों के सरताज, मखमली आवाज के मालिक रफी साहब को भारत रत्न से सम्मानित करे। कारण, यह भी एक कटु सच है कि कुछ कलाकार, अदाकार अपनी औसत अदाकारी के बावजूद फिल्मों में लंबे समय तक उन्हीं के कारण टिके रहे। इसीलिए, केवल इसीलिए मेरा मानना यही है कि उन्हें भारत रत्न जैसा सबसे बड़ा अवॉर्ड बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था। उनके कई चाहने वालों का मानना है कि मुसलमान होने के कारण रफी साहब के लिए कभी किसी ने राजनीतिक लॉबिंग नहीं की। 

Rafi Lata
लता मंगेश्कर, मो. रफ़ी (फाइल फोटो)

कलाकार का कोई महजब या संप्रदाय नहीं होता। हालांकि अकेले रामविलास पासवान ऐसे नेता थे, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से मोहम्मद रफी को भारत रत्न देने की मांग की थी, लेकिन इस पर गौर नहीं किया गया। हम कह सकते हैं कि यह रफी साहब के गीतों का ही जादू था कि सिर्फ उनकी बदौलत ही कई फिल्में सुपरहिट हुईं। कुछ लोग किशोर कुमार को नंबर वन गायक मानते हैं, लेकिन खुद किशोर कुमार अपने आपको रफी साहब के योग्य नहीं मानते थे। और यही वजह है कि वह कहा करते थे कि, सिंगर तो एक ही है, और वो है रफी साहब। किशोर दा के कमरे में उन्होंने केवल दो तस्वीरें लगा कर रखी थी…एक तस्वीर थी सहगल साहब की और दूसरी थी रफी साहब की। बावजूद इसके हैरानी की बात तो यही है कि सुर सम्राट स्व. रफी साहब को भारत रत्न न कांग्रेस सरकार ने दिया और न ही एनडीए या अन्य अल्पकालीन सरकारों ने। इतनी दीर्घ व गहन मांग होते हुए भी सतत उपेक्षा! क्यों, यह समझ से परे है।

दरअसल,  सोशल मीडिया में लोगों ने इस तरह के तर्क भी दिये कि रफी साहब को भारत रत्न, तो लता मंगेशकर के पहले या साथ ही दे देना चाहिए था। इसके साथ ही सोशल मीडिया में इस बात की भी चर्चा हुई है कि रफी साहब की रूहानी आवाज़ किसी पुरस्कार का मोहताज़ नहीं है, क्योंकि वह आज भी करोड़ों दिलों में राज कर रहे हैं। ये तर्क भी दिये ग्रये कि वर्तमान एनडीए सरकार को अब रफी साहब को भारत रत्न देने की घोषणा कर देनी चाहिए। लेकिन इस देश में सच्चे कलाकारों की कोई कीमत ही नहीं है, वरना उनके जाने के 43 सालों के बाद भी भारत सरकार को इनकी याद नहीं आयी?

सोशल मीडिया में उनके चाहने वाले यही सवाल पूछ रहे हैं कि ऐसा क्यों हुआ? एक बार सरकार ने चर्चा भी नहीं की होगी कि रफी साहब को भारत रत्न देने का समय आ गया है। सोचें, यदि सरकार ऐसी घोषणा करती है तो इसी से उनके चाहने वाले लोगों में खुशी की लहर दौड़ जाएगी। 

हम सब यह भलीभांति जानते हैं कि कला और कलाकारों की कोई जात नहीं होती। कलाकार भेदभाव से परे हैं। कुछ लोगों ने यह सवाल भी किया कि रफी साहब मुस्लिम थे, और अगर इसीलिए उन्हें नजरंदाज किया गया है, तो इसे हम मूर्खता ही कहेंगे। रही बात भारत रत्न की, तो रफी साहब तो हमारे हर भारतवासियों के दिल में बसे हुए एक रत्न हैं। जब तक ये दुनिया है और जब तक आकाश में चांद और सूरज है,  तब तक रफी साहब हमारे दिल-ओ-दिमाग में सुर-सम्राट बन कर राज करते रहेंगे। व‍ह हमेशा अव्वल नंबर पर ही रहेंगे। इसीलिए सरकार से मेरा सवाल यही है कि रफी साहब के साथ गीत-संगीत के क्षेत्र में अहम योगदान देने वाले इस महान शख्‍स के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है?

अक्सर यही सवाल शहंशाह-ए–तरन्नुम मोहम्मद रफी साहब के चाहने वाले भी पूछते हैं, लेकिन इस सवाल का माकूल जवाब किसी के पास नहीं है कि रफी साहब को अभी तक भारत रत्न से नवाजा क्यों नहीं गया? यही नहीं, हमने इस शानदार गायक की उपेक्षा क्‍यों की है? दिलचस्‍प बात तो यह है कि रफी साहब के चाहने वाले उन्हें आज भी अघोषित भारत रत्न ही मानते हैं। ज्यादातर गीत व संगीत के जानकार,  संगीत प्रेमी, श्रोता और समीक्षकों ने रफी साहब को भारतीय सिने संगीत का ‘तानसेन’ कहा। दरअसल, इस भारतीय तानसेन की जन्म शताब्दी वर्ष इसी साल यानी 2023 में 24 दिसंबर से प्रारंभ हो चुकी है। इसलिए मेरा यही निवेदन है कि राष्ट्रप्रेम की दुहाई देने वाला और राष्ट्रप्रेम का बोझ ढोने वाला यह देश रफी साहब को मरणोपरांत ही सही, भारत रत्न देने की घोषणा करे।

“दरअसल, उनकी जन्मशती पर उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी। केवल उनके चाहने वाले ही नहीं, बल्कि निर्माता, निर्देशक, नामचीन कलाकार, संगीतकार और गीतकार भी रफी साहब की गायकी को दुनिया जहां में सबसे ऊपर मानते हैं, जिसकी बराबरी करना, या उसके आसपास भटकना किसी भी गायक के लिए मुमकिन नहीं था। रफ़ी साहब कभी भी किसी अवॉर्ड के मोहताज नहीं थे। मैं तो यही कहूंगा कि कोई भी अवॉर्ड शहंशाह-ए-तरन्नुम के आगे फीका पड़ जाता!! भारत रत्न तो रफी साहब के लिए एक छोटा पुरस्कार है। रफी साहब तो इस पृथ्वी के रत्‍न हैं।”

यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि रफी साहब को आज तक दादा साहब फाल्के व देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी वंचित रखा गया है! सवाल है कि क्यों? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि क्यों? ऐसे में मेरा मानना यही है कि मोहम्मद रफी साहब भारत रत्न के लिए मोहताज नहीं, बल्कि भारत रत्न मोहम्मद रफी साहब का मोहताज है। सच तो यही है कि उनके गाये वतनपरस्ती के गीत ‘ऐ वतन, ऐ वतन, हमको तेरी क़सम’, ‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों’, ‘जट्टा पगड़ी संभाल’, ‘हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल के’, ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ आदि गीतों को आज तक हम नहीं भूल पाये हैं।

गीतों की दुनिया में कई मौसम आए और चले गए, लेकिन रफी साहब का मौसम अभी भी जवां और सदाबहार है। वे सदाबहार थे और सदियों तक सदाबहार ही रहेंगे और सच तो यही है कि हिंदी सिनेमा के गीत-संगीत की जब भी बात होगी, रफी साहब उसमें हमेशा अव्वल नंबर पर ही विराजमान रहेंगे। कुछ लोगों ने सोशल मीडिया में यही तर्क दिये कि मोहम्मद रफी साहब को भारत रत्न ना देकर भारत सरकार भारत रत्न का अपमान कर रहा है। सरकार को इसके लिए उचित कदम उठाना चाहिए।  मोहम्मद रफी वास्तव में भारत के एक रत्न थे, जैसे सुब्बुलक्ष्मी जी और लता मंगेश्कर जी थी।

हिंदी फिल्मी संगीत में रफी साहब का योगदान, या फिर यूं कहें कि हिंदी फिल्मी संगीत में रफी साहब को छोड़ कर क्या हम हिंदी फिल्मी संगीत के सुनहरे पल की कल्पना कर सकते हैं? शायद नहीं कर सकते। मो. रफी का गायन और उनकी शख्सियत किसी भी तरह अपने समकालीन गायकों से कमतर नहीं, बल्कि कई मामलों में तो उनसे इक्कीस ही साबित होगी। ना तो पहले, न ही आज ! मुझे तो संदेह है कि ना ही आगे आने वाले कई सदियों तक मोहम्मद रफी साहब जैसा गायक पैदा होगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में बहुत अच्छे से अच्छे गुलोकार पैदा  हुए हैं और पैदा होते  भी  रहेंगे, मगर रफी साहब की आवाज में जो वैरायटी थी, वह विभिन्नता नहीं मिल सकेगी। उनकी आवाज न केवल हिंदुस्तान में सदियों तक गूंजती रहेगी, बल्कि बाहर के मुल्कों में भी वह छाये रहेंगे। शायद इसीलिए रफी साहब ने स्वयं गाया था कि तुम मुझे यूं भुला न पाओगे। • (लेखक वरिष्ठ फिल्म पत्रकार हैं। रविवार, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर से संबद्ध रहे हैं। मो. रफी पर उनकी किताब ‘मोहम्मद रफी एक अनमोल रतन’ का अंश। यह पुस्तक 2400 पन्नों की है। तीन वॉल्यूम में है। लेखक मुंबई में रहते हैं। संपर्क- [email protected])  

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