लापता लेडीज से अक्षय तृतीया का क्या है कनेक्शन… कहानी घूंघट के पट की

लापता लेडीज़ की कहानी के केंद्र में एक व्यंग्य कथा है। ट्रेन में दो नवविवाहित दुल्हनों की अदला-बदली हो जाती है क्योंकि घूंघट के चलते उनकी पहचान नहीं हो पाती। चेहरा नहीं दिख पाता। यानी घूंघट को यहां एक तरह से जिम्मेदार ठहराया गया है। फिल्म के मुताबिक घूंघट ऐसी रुढ़ि और पुरानी मान्यता का प्रतीक है जो लोगों को रास्ता भटका देता है। इस फिल्म की शूटिंग मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में की गई है। घटनाएं और पात्र काल्पनिक हैं। राज्य का नाम निर्मल प्रदेश रखा गया है। यहां तक कि गांव और रेलवे स्टेशन का नाम भी काल्पनिक और प्रतिकात्मक है।

फिल्ममेकर किरण राव कहती हैं – “हम फिल्म के विचार को सिर्फ एक जगह की घटना तक सीमित नहीं करना चाहते थे। हम इस विचार का वैश्वीकरण करना चाहते थे। जब भी आप कहीं भी कोई फिल्म बनाते हैं या वह किसी समुदाय के बारे में होती है, तो हमेशा कुछ ऐसे दर्शक होते हैं जो ‘यह भाषा यहां क्यों बोली जाती है?’ जैसी बातों पर नाराज हो सकते हैं। इसलिए इसे व्यापक फलक में पेश किया गया है।

फिल्म की कहानी इन्हीं दोनों प्रमुख महिला पात्रों के ईर्द-गिर्द घूमती है। एक संकोची मिजाज की युवती है जिसका नाम है- फूल कुमारी (नितांशी गोयल)। वह रेलवे स्टेशन पर छूट जाती है, उसका पति दीपक (स्पर्श श्रीवास्तव) गलती से दूसरी दुल्हन पुष्पा रानी (प्रतिभा रांटा) को घर ले आता है। क्योंकि ट्रेन की एक ही बोगी में दोनों जोड़ा बैठा है। दोनों दुल्हनों के चेहरे पर घूंघट है।

दिलचस्प बात ये कि लापता लेडीज की कहानी जहां से शुरुआत होती है वहां ट्रेन के डिब्बे में एक पात्र कहता है- तृतीया पर एक और बलि। यह संवाद सीधा सीधा अक्षय तृतीया पर बड़ी संख्या में होने वाली शादियों पर तंज है।

दोनों दुल्हनें, फूल और पुष्पा। उन्हें अपने पतियों का नाम लेने की अनुमति नहीं है और उनसे उनके पीछे, उनकी छाया में चलने की अपेक्षा की जाती है। कुछ मायनों में वह पितृसत्तात्मक व्यवस्था का भी शिकार है। दीपक बस सही काम करना चाहता है और वह अपनी पत्नी से सच्चा प्यार करता है।

किरण कहती हैं – “वह हमारे कहने का तरीका था कि एक मजबूत पुरुष चरित्र बिना ताकतवर या बंदूक उठाए भी हो सकता है। वह मेरी नजर में एक ऐसा नायक है और हर जगह के पुरुषों के लिए एक प्यारा उदाहरण है। स्पर्श ने भी उसे बहुत ही सौम्यता से निभाया।”

ग्रामीण पुलिस की कहावत पर एक और पलटवार रवि किशन का मनोहर था। वह एक पान चबाने वाला, संगीत-प्रेमी पुलिसकर्मी है जो इन दुल्हनों की अदबदली से चकित होने की बजाय अधिक खुश होता है।

किरण राव कहती हैं, – ’’रवि ने इस किरदार को बहुत ही सहजता से निभाया।’’ यहां तक ​​कि आमिर ने भी इस भूमिका के लिए ऑडिशन दिया और हालांकि उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन उन्हें नहीं लिया गया। किरण राव ने पहले कहा था कि उनके जैसा सुपरस्टार होने से फिल्म के प्रति लोगों की उम्मीदें असंतुलित हो जाती।

लापता लेडीज़ की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, उसकी परतें खुलती जाती हैं। पूरी फिल्म का मकसद सामने आने लगता है। पुष्पा रानी के किरदार में कहानी के मकसद का ताना बाना बुना है। कहानी के केंद्र में युवती की इच्छा के विरुद्ध विवाह ही नहीं है बल्कि उसके अपने करियर और एजुकेशन के प्रति जागरुकता भी है। फिल्म की कहानी में इसे जीतते हुए दिखाया जाता है। इसलिए यह फिल्म कुछ अलग मिजाज की हो जाती है।

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